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सबसे बड़ी समस्या

कुछ दिन पहले मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ बाहर घूमने निकला। हममें से हर कोई अपनी-अपनी समस्या के बारे में बातें कर रहा था। कुछ अपने तलाकशुदा माता-पिता के बारे में बातें कर रहे थे, तो कुछ टूटे हुए रिश्तों के बारे में, और कुछ नौकरी नहीं मिलने की। मैं भी उनमें शामिल होकर एक हारे हुए इंसान की तरह अपनी कहानी बताने लगा। लेकिन हमारे ग्रुप में एक लड़का था आनंद, वो बस सभी की बातें सुनकर मुस्करा रहा था। थोड़ी देर में सब एक-एक करके चले गए, केवल मैं और आनंद रह गए। मैं लगातार अपनी समस्याएँ बताए जा रहा था, आनंद केवल सुन रहा था और मुस्करा रहा था। आखिर मैंने इसका कारण पूछ ही लिया। उसने जवाब दिया, "भाई, हर किसी के पास समस्या होती है और हर कोई अलग-अलग तरीके से इस समस्या का समाधान ढूंढता है। पर मैं समस्याओं में विश्वास नहीं करता।" मुझे उसकी बात समझ में नहीं आई। उसने कहा, "अंजाने में हर कोई यहाँ प्रतिस्पर्धा कर रहा है कि उसके पास दूसरों से ज्यादा समस्याएँ हैं।" उसकी बात ने मुझे सोच में डाल दिया। फिर उसने कहा, "क्या तुम अपनी बाईक से मुझे मेरे घर छोड़ दोगे?" पंद्रह मिनट बा...

हारे हुए का वक्तव्य

वह कथा कम सबको ज्ञात है कि लोमड़ी ने बहुत छलांग मारी, पर वह अंगूरों तक नहीं पहुँच सकी। अव अहंकार यह भी तो स्वीकार नहीं कर सकता कि मेरी छलांग ही छोटी है। अहंकार यही कहेगा कि अंगूर खट्टे हैं। लेकिन यह कहानी अघूरी है। अब आगे की कहानी पढ़िए। जब उस लोमड़ी ने यह कहानी पढ़ी, तो उसने तत्काल एक जिम्नाजियम में जाकर व्यायाम करना शुरू कर दिया। छलांग लगानी सीखी, दवाएँ लीं, ताकत के लिए विटामिन्स लिए। जब लोमड़ी पर्याप्त ताकतवर हो गई, तो वापस गई उसी वृक्ष के नीचे, और पहली ही छलांग में अंगूर का गुच्छा उसके हाथ में आ गया। लेकिन जब उसने चखा, तो अंगूर सच में ही खट्टे थे। अब लोमड़ी क्या करे? उसने लौट कर अपने साथियों से कहा कि - अंगूर बहुत मीठे हैं। अहंकार है, तो किसी तरह हार नहीं मानेगा। न पहुँच पाएँ अंगूर तक, तो अंगूर खट्टे हैं। और पहुँच जाएँ, तो अंगूर खट्टे हों तो भी मीठे हैं।

गलती का अहसास

शेख सादी बचपन से पढ़ने में बहुत तेज थे। उनकी हाजिर जवाबी और प्रखरबुद्धि का ही परिणां था कि कक्षा में सदैव अव्वल आया करते थे। एक दिन वह अपने साथी की शिकायत करने शिक्षक के पास पहुँचे। "उस्ताद जी! कक्षा में मेरा साथी मुझसे जलता है। जब मैं हदीस के मुश्किल से मुश्किल शब्दों का आसान-सा मतलब निकालता हूँ, तो उसे मुझसे बहुत जलन होती है। यदि उसकी यही हालत रही, तो सचमुच उसे नरक ही मिलेगा।" शिक्षक ने सुना तो बोले, "तुम्हारा साथी तुमसे जलता है, इसलिए तुम उस पर उंगली उठा रहे हो। मगर तुम भी तो अपने गिरेबां में झांक कर देखो कि तुम भी तो उससे जल रहे हो। पीठ पीछे किसी की निन्दा करना भी घोर अपराध है। अगर तुम्हारे दोस्त ने नरक का रास्ता अपनाया है, तो चुगलखोरी करके तुम भी उसी रास्ते पर जा रहे हो। खुदा से डरो, और किसी दूसरे की बुराई करने से पहले अपने अंदर झाँक कर देखो कि कहीं तुम भी किसी की बुराई तो नहीं करते हो?" शिक्षक के समझाने पर शेख सादी को अपनी गलती का अहसास हो गया।

राजा की समझदारी

एक राजा जंगल में शिकार के लिए गए और रात होने पर अपने सैनिकों के साथ वहीं शिविर लगा कर रुक गए। जब राजा सो रहा थे, तब एक बंदर उनके शिविर में घुस गया और उछल-कूद करने लगा। बंदर की आवाज सुनकर राजा की नींद खुल गई। उठ कर देखा तो उनके समीप एक भयंकर सांप था, जो उन्हें डंसने वाला था। उसके बाद राजा ने बंदर का उपकार माना कि इसकी वजह से मेरी जान बच गई। बंदर को फल दिए और उसे अपने साथ राजमहल में ले आए। राजा को बंदर से विशेष स्नेह हो गया था। इसलिए उसे अपने शयन-कक्ष में ही रखने लगे। रात में राजा सोते तो बंदर उनकी रखवाली करता था। एक रात राजा की नाक पर एक मक्खी आकर बैठ गई। बंदर ने मक्खी को उड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं उड़ी। बंदर ने पास रखा डंडा उठाया और जोर से राजा की नाक पर दे मारा। राजा दर्द के कारण तड़पने लगे, लेकिन बंदर अब भी, राजा के शरीर पर जहाँ भी मक्खी बैठी देखता,  डंडे से मार रहा था। राजा समझ गए कि बंदर एक जानवर है, उसमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं है। उसकी मूर्खता की वजह से आज मेरी जान भी जा सकती थी। इसलिए उन्होंने तुरंत बंदर को महल से बाहर निकाल दिया। कथा की सीख हमे...

सबसे बड़ी गरीब

आज सुबह किशोर की आँख खुली तो सरला को कुछ अनमना-सा पाया। वो तकिये को आगोश में लिए सिसक रही थी। किशोर का मन यह सोच कर व्यथित हो रहा था कि आखिर क्या बात हो गई, उसे कभी रोते हुए नहीं देखा, सुख हो या दुःख हमेशा मुस्कान उसकी शोभा बनी रही, और आज किसी बात की कमी नहीं है। गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर, और तो और मैं भी आब रिटायर हो चुका हूँ। बेटा-बेटी विदेश में पढ़-लिख कर वहीं सैटल हो चुके हैं, और बहुत अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। "क्या हुआ?" "कुछ नहीं।" "रो क्यों रही हो? सिर में दर्द है क्या?" "नहीं, आपने चाय पी कि नहीं?" "मेरी चाय की छोड़ो, पहले ये बताओ कि बात क्या है? तुम्हें मेरी कसम।" "मैं बहुत अभागी हूँ किशोर, कुछ भी समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ? इस उम्र में बच्चों की बहुत याद आती है। कहने को तो आज हमारे पास सब कुछ है, लेकिन अपने आपको बहुत गरीब महसूस कर रही हूँ।" "आखिर हुआ क्या? बच्चों को तो हमने ही भेजा था विदेश में, जिद करके।" "हाँ भेजा था, लेकिन ये नहीं जानती थी कि वो वहीं के होक...

कुबेर का अभिमान

देवराज इंद्र के कोषाध्यक्ष कुबेर अपने आपको देवकोष का मालिक समझकर धन का निजी स्वार्थ में उपयोग करने लगे। एक दिन वे भगवान शिव के पास पहुँचे और बोले, "महादेव! मैं एक भव्य-भोज का आयोजन कर रहा हूँ। मेरी इच्छा है कि उसमें समस्त देवगण, यक्ष, गंधर्व आदि उपस्थित हों और सभी तृप्त होकर लौटें। कृपया आप भी सपरिवार पधारें।" शंकर जी समझ गए कि कुबेर अहंकारग्रस्त हो गए हैं। उन्होंने कहा, "मैं तो नहीं आ पाऊँगा, न पार्वती ही आ पाएँगी; किंतु गणेश जी को जरूर भेज दूँगा।" गणेश जी ने पहुँचते ही कुबेर से कहा, "मुझे भूख लगी है। आप सबसे पहले मुझे भोजन कराएँ।" गणेश जी के क्रोध से परिचित कुबेर ने उनकी थाली जल्दी ही परोस दी। गणेश जी ने भोजन शुरू किया, तो खाते ही चले गए। देखते-देखते तमाम व्यंजन समाप्त होने लगे। कुबेर यह देखकर घबरा गए। अन्य अतिथि क्या भोजन करेंगे, यह सोचकर उन्होंने भोजन परोसना रुकवा दिया। गणेश जी क्रोधित होकर बोले, "आप तो बड़ा दावा कर रहे थे कि कोई भी अतृप्त होकर नहीं लौटेगा और मुझ अकेले का भी पेट नहीं भर पाए?" यह देखकर कुबेर कैलाश की ...

ईश्वर दो बार हँसते हैं

ईश्वर दो बार हँसते हैं।  एक बार उस समय – जब दो भाई जमीन बाँटते हैं और रस्सी से नापकर कहते हैं, “ इस ओर की जमीन मेरी है, और उस ओर की तुम्हारी। ” ईश्वर यह सोचकर हँसते हैं कि “ संसार है तो मेरा ; और ये लोग थोड़ी-सी मिट्टी लेकर ‘ इस ओर की मेरी, उस ओर की तुम्हारी ’ कर रहे हैं !” फिर ईश्वर एक बार और हँसते हैं – बच्चे की बीमारी बढ़ी हुई है। उसकी माँ रो रही है। वैद्य आकर कह रहा है, “ डरने की क्या बात है, माँ ! मैं अच्छा कर दूँगा। ” वैद्य नहीं जानता कि ईश्वर यदि मारना चाहे, तो किसकी शक्ति है जो अच्छा कर सके ? स्वामी रामकृष्ण परमहंस