सबसे बड़ी समस्या
कुछ दिन पहले मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ बाहर घूमने निकला। हममें से हर कोई अपनी-अपनी समस्या के बारे में बातें कर रहा था। कुछ अपने तलाकशुदा माता-पिता के बारे में बातें कर रहे थे, तो कुछ टूटे हुए रिश्तों के बारे में, और कुछ नौकरी नहीं मिलने की। मैं भी उनमें शामिल होकर एक हारे हुए इंसान की तरह अपनी कहानी बताने लगा। लेकिन हमारे ग्रुप में एक लड़का था आनंद, वो बस सभी की बातें सुनकर मुस्करा रहा था।
थोड़ी देर में सब एक-एक करके चले गए, केवल मैं और आनंद रह गए। मैं लगातार अपनी समस्याएँ बताए जा रहा था, आनंद केवल सुन रहा था और मुस्करा रहा था। आखिर मैंने इसका कारण पूछ ही लिया। उसने जवाब दिया, "भाई, हर किसी के पास समस्या होती है और हर कोई अलग-अलग तरीके से इस समस्या का समाधान ढूंढता है। पर मैं समस्याओं में विश्वास नहीं करता।"
मुझे उसकी बात समझ में नहीं आई। उसने कहा, "अंजाने में हर कोई यहाँ प्रतिस्पर्धा कर रहा है कि उसके पास दूसरों से ज्यादा समस्याएँ हैं।" उसकी बात ने मुझे सोच में डाल दिया। फिर उसने कहा, "क्या तुम अपनी बाईक से मुझे मेरे घर छोड़ दोगे?"
पंद्रह मिनट बाद मैं उसके घर के आगे खड़ा था। यह एक छोटी-सी झोपड़ी थी। उसने अंदर चलने को कहा। मैं अंदर चला गया। अचानक से उसने चिल्लाना शुरू कर दिया - "अप्पा!...अम्मा!"। मैं उसे चारों ओर घूम-घूम कर चिल्लाते देख डर गया। उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा, "देखा! मैं यह पिछले दो सालों से कर रहा हूँ, और वो कभी जवाब नहीं देते। जानते हो क्यों? क्योंकि भगवान ने उन्हें मुझसे दूर कर दिया है।" मैं खामोश खड़ा था। उसने मुझसे कहा, "चलो तुम्हारे घर चलते हैं।"
जब हम मेरे घर पहुँचे, तो आज मैंने अपने उसी घर को एक नए नजरिये से देखा। यह एक दोमंजिला मकान था। उसने मुझे अपनी माँ को कॉल करने को कहा और फोन को स्पीकर पर रखने को कहा। उसने कहा - अपनी माँ से कहो कि तुम आज देर से आओगे। मैंने फोन पर रिंग किया, फोन माँ ने उठाया, उठाते ही उन्होंने पूछा, "कहाँ पर हो?" मैंने कहा, "मुझे देर हो जाएगी, मैं थोड़ी देर बाद घर आउँगा।" उदास आवाज में माँ ने रहा, "खाना तैयार है। जल्दी घर आ जाओ, हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।" फोन कट गया। कुछ पल हम दोनों खामोश रहे। उसने कहा, "भगवान अनोखा है और जिंदगी भी अद्भुत है। तुम बस यह बात महसूस नहीं कर पाते"
थोड़ी देर में सब एक-एक करके चले गए, केवल मैं और आनंद रह गए। मैं लगातार अपनी समस्याएँ बताए जा रहा था, आनंद केवल सुन रहा था और मुस्करा रहा था। आखिर मैंने इसका कारण पूछ ही लिया। उसने जवाब दिया, "भाई, हर किसी के पास समस्या होती है और हर कोई अलग-अलग तरीके से इस समस्या का समाधान ढूंढता है। पर मैं समस्याओं में विश्वास नहीं करता।"
मुझे उसकी बात समझ में नहीं आई। उसने कहा, "अंजाने में हर कोई यहाँ प्रतिस्पर्धा कर रहा है कि उसके पास दूसरों से ज्यादा समस्याएँ हैं।" उसकी बात ने मुझे सोच में डाल दिया। फिर उसने कहा, "क्या तुम अपनी बाईक से मुझे मेरे घर छोड़ दोगे?"
पंद्रह मिनट बाद मैं उसके घर के आगे खड़ा था। यह एक छोटी-सी झोपड़ी थी। उसने अंदर चलने को कहा। मैं अंदर चला गया। अचानक से उसने चिल्लाना शुरू कर दिया - "अप्पा!...अम्मा!"। मैं उसे चारों ओर घूम-घूम कर चिल्लाते देख डर गया। उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा, "देखा! मैं यह पिछले दो सालों से कर रहा हूँ, और वो कभी जवाब नहीं देते। जानते हो क्यों? क्योंकि भगवान ने उन्हें मुझसे दूर कर दिया है।" मैं खामोश खड़ा था। उसने मुझसे कहा, "चलो तुम्हारे घर चलते हैं।"
जब हम मेरे घर पहुँचे, तो आज मैंने अपने उसी घर को एक नए नजरिये से देखा। यह एक दोमंजिला मकान था। उसने मुझे अपनी माँ को कॉल करने को कहा और फोन को स्पीकर पर रखने को कहा। उसने कहा - अपनी माँ से कहो कि तुम आज देर से आओगे। मैंने फोन पर रिंग किया, फोन माँ ने उठाया, उठाते ही उन्होंने पूछा, "कहाँ पर हो?" मैंने कहा, "मुझे देर हो जाएगी, मैं थोड़ी देर बाद घर आउँगा।" उदास आवाज में माँ ने रहा, "खाना तैयार है। जल्दी घर आ जाओ, हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।" फोन कट गया। कुछ पल हम दोनों खामोश रहे। उसने कहा, "भगवान अनोखा है और जिंदगी भी अद्भुत है। तुम बस यह बात महसूस नहीं कर पाते"
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