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Showing posts from September, 2019

हकीकत

लघु कथा - हकीकत राम में स्कूल का होमवर्क पूरा कर जब उनकी नन्हीं बिटिया करीने से बस्ते में कॉपी-किताबें सजाने लगी, तो वे उसकी बलसुलभ कार्यकुशलता को देखकर अभिभूत हो उठे। वे सोचने लगे कि बड़ी होकर जरूर यह मेरा नाम रोशन करेगी। अभी से ही मेरा कितना ख्याल रखती है। सुबह जब वे उसे स्कूल बस तक छोड़ने सड़क तक जाते, तो वह बार-बार उसे स्कूल बस तक छोड़ने सड़क तक जाते, तो वह बार-बार उन्हें रोकना चाहती, "डैड! अब मैं दूधपीती बच्ची थोड़े ही न हूँ! आप आराम करें...... रिलेक्स..... मैं स्वयं ही चली जाऊँगी।" "नहीं बेटे! यह तो मेरी ड्यूटी है। जब तक तुम्हें बस में न बिठा दूँ, मुझे चैन कहाँ?" और उसके ना-नुकुर करने के बावजूद वह उसे स्कूल बस में बिठाकर ही दम लेते। वे यह सोचकर कि बिटिया उन्हें जरा भी कष्ट देना नहीं चाहती, मन ही मन फूले नहीं समाते और सोचते ईश्वर सबको ऐसी ही संतान दे। "डैड...! किस सोच में डूब गए आप?" स्कूल बैग को अलमारी में रखकर वह उनसे मुखातिब हुई। "बस यों ही...... बेटे, कितनी प्यारी है, तू!" उन्होंने उसका माथा चूमते हुए कहा। "मुझे

Teacher-टीचर

व्यंग्य - टीचर गाँव के स्कूलों में टीचर का कार्य करने वाले कुछ व्यक्तियों की मानसिकता पर व्यंग्य करती हुई लघु-कथा, जिनके कारण पूरे टीचर समाज के बारे में गलत और निम्न स्तर की धारणाएँ बन जाती हैं और कर्मठ टीचरों को भी शर्मिंदा होना पड़ जाता है। मैं हूँ टीना,  एक टीचर! भाई की इंजीनियरिंग में पापा का पूरा फंड फुँक गया। मैंने बी.ए. किया, फिर खुद ही ट्यूशन करके बी.एड. किया। प्राइवेट स्कूल में चार वर्ष टीचर रही। वहाँ दो हज़ार रुपए देते थे, तीन हज़ार पर हस्ताक्षर करवाते थे। बाद में किसी तरह मैं एक सरकारी स्कूल में टीचर हो गई, तब से आराम ही आराम है। खूब सारी वेतन मिलती है, मजे ही मजे हैं। मैंने स्कूटी जानबूझ कर नहीं ली है। गाँव जाने वाली बस जब पहुँचेगी, तभी तो स्कूल का ताला खोलूँगी। बंद भी उसी तरह बस के समय से करना होता है। शिक्षा विभाग के आदेश स्कूलों के लिए अलग हैं, पर प्राइवेट बसों के समय पर किसी का आदेश लागू नहीं होता। गाँव वाले बच्चों को पढ़ाना ही कौन चाहता है? उन्हें तो खेत में फसल भी काटना है, घर का चौका-चूल्हा भी करना है। परीक्षा में कक्षा आठ तक किसी को फेल भी नहीं कर सकते। अगल

स्वर्ग के हकदार

प्रेरक कथा - स्वर्ग के हकदार संत तिरुवल्लुवर को बहुत से भक्त और शिष्य घेरे थे। एक भक्त ने पूछा, 'प्रभु, स्वर्ग-नर्क की परिभाषा तो हम कई बार सुन चुके हैं, परंतु वास्तव में स्वर्ग और नर्क के अधिकारी कौन-कौन हैं, यह कैसे ज्ञात हो?' संत बोले, 'पुत्र, अच्छा हो यदि जिज्ञासु जन मेरे साथ भ्रमण पर चल पड़ें।' कुछ दूर चलने पर एक शिकारी एक हिरण का शिकार करके उसे कंधे पर लाता हुआ दिखाई दिया। उसे देख कर संत बोले, 'शिकारी इतने निकृष्ट कर्म कर रहा है, इसके लिए यहाँ भी नर्क समान है और मृत्यु पश्चात भी नर्क ही मिलेगा।' एक आश्रम के बाहर एक तपस्वी तप कर रहा था। संत ने कहा, 'इतना तप करते हुए यह नर्क समान कष्ट सह रहे हैं, मगर वहाँ इन्हें स्वर्ग मिलेगा।' एक वेश्यालय के आगे से गुजरते हुए, वेश्या के घुंघरुओं की आवाज़ सुन कर कहने लगे, 'देखो, यह भोग-विलास में डूबी हुई इस समय दुनिया का हर सुख स्वर्ग समान ही भोग रही है। मगर इसके भविष्य में नर्क लिखा है।' अंत में एक सद्गृहस्थ के घर के सामने सब विश्राम करने लगे। गृहस्थ सबके लिए शीतल जल ले आया। संत ने बताया

तर्पण का फल

पौराणिक कथा - तर्पण का फल जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी। पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझ कर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा। अतः वह बोली, 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं. किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूँगी। दोनों मिल कर सारा काम कर लेंगी।' उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया। दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए, सभी काम निपटा कर अपने घर चली गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई

Samaya aur Azadi-समय और आजादी

प्रेरक प्रसंग - समय और आजादी ए.पी.भारती महात्मा गाँधी समय के बड़े पाबंद थे। एक बार एक बैठक में शामिल होने को पहुँचे। अध्यक्षता करने वाले सज्जन बहुत देर से पहुँचे, इसलिए बैठक बहुत देर से प्रारंभ हुई। यह देरी महात्मा गाँधी जी को बहुत अखरी। अध्यक्ष महोदय के पहुँचने पर स्पष्ट कहने के आदी महात्मा गाँधी ने कहा, 'यदि हमारे नेतृत्वकर्ताओं की स्थिति यह है तो सच मानिए हमें आजादी भी देर से ही मिलेगी।' अपनी गलती पर अध्यक्ष शर्मिंदा हो गए।

चूड़ियाँ

लघु कथा - चूड़ियाँ नज़्मसुभाष 'तुमने शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?' उसने फोन पर ताना मारा। 'वो घरवाले....' हकलाते हुए कहा उसने। 'हाँ, मोटा दहेज जो मिला होगा, कसमें हमारे साथ, निकाह किसी और से......!' 'अब क्या बताऊँ? तुम समझती कहाँ हो?' 'हाँ, नासमझ तो मैं थी ही। खैर, मेरा भी निकाह होने वाला है।' 'अरे वाह..... कहाँ से?' 'एक कश्मीरी लड़के से बात चल रही है।' 'वाह! तुम्हारे तो भाग्य जग गए, मगर इतनी दूर?' 'नजदीक वाले तो चुपचाप निकल गए। अब दूर ही सही।' 'अरे छोड़ो.... खुश तो हो न!' 'खुश तो हूँ... आखिर मुझे सेब पसंद थे ही और मेरी ससुराल में सेब के कई बागान हैं....।' वो खिलखिला कर हँसी। 'सेब तो मुझे भी पसंद हैं, पर मेरी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ?' अफसोस में उसने गर्दन झटक दी। 'दूरियाँ तुमने बढ़ाई थीं मैंने नहीं। निकाह होने दो, सीजन में तुम्हें सेब भेज दिया करूँगी।' 'सच?' 'यकीन कर सकते हो!' 'बिल्कुल। यकीन तो है तुम पर।' फोन पर हुई इस बात को दो साल

सद्गुणों की महक

प्रेरक कथा - सद्गुणों की महक संत सदानंद के पास एक युवक आया। उनके चरण छूकर उन जैसा आचरण हो जाए, ऐसा आशीर्वाद मांगने लगा। वहां के वातावरण में व्याप्त फूलों की सुगंध की प्रशंसा करते हुए उसने संत से कुछ ज्ञान देने को कहा तो संत बोले, 'बेटा, अपना जीवन सदा इन फूलों की भांति रखना ताकि तुम्हारे पास आने वाले अच्छा महसूस करें। पर स्मरण रहे, फूल सदा अपने आसपास का वातावरण ही महकाते हैं, जबकि व्यक्ति के सद्गुणों की कोई सीमा नहीं होती। यह महक चारों दिशाओं में समान रूप से महकती है। यहाँ की पुष्प-लताओं को देखो, यह वर्षों से आंधी-तूफानों का सामना करके भी डट कर खड़ी हैं। जानते हो क्यों, क्योंकि यह समय और वातावरण के अनुरूप झुकना जानती हैं और तेज़ हवाओं के साथ स्वयं को झुका लेती हैं, इसीलिए इनका अस्तित्व बना हुआ है। याद रखना, मृत्यु के पश्चात व्यक्ति का धन सगे-संबंधी ले लेते हैं और शरीर को अग्नि जला देती है। मगर उसके पुण्य-कर्म और सद्गुण ही उसे बरसों तक लोगों के हृदयों में जीवित रखते हैं। यह बात तुम अगर जीवन में उतार लो तो इसमें संशय नहीं कि अन्य लोग भी तुम्हारे चरण-स्पर्श करने में गर्व महसूस करे

भगवान हमारे मन में वास करते हैं

प्रेरक कथा - भगवान हमारे मन में वास करते हैं एक संत के पास मूल्यवान हीरा था। एक चोर को यह बात मालूम हुई तो वह हीरा चुराने के लिए संत के आश्रम में गया। चोर ने सोचा कि संत को नुकसान पहुँचाए बिना ही हीरा चुराना है, इसलिए उसने संत से कहा कि वह उनका शिष्य बनना चाहता है। संत ने कहा, 'ठीक है, आज से तुम यहीं रहो।' इसके बाद चोर हीरा चुराने का मौका ढूंढने लगा। संत जब भी आश्रम से बाहर जाते, चोर हीरा खोजना शुरू कर देता। कई दिनों के प्रयास के बाद भी चोर हीरा खोज नहीं पा रहा था। एक दिन उसने संत को सच्चाई बता दी। उसने कहा, 'मैं एक चोर हूँ और आपका हीरा चुराने यहाँ आया हूँ। मैंने आपका पूरा आश्रम खोज लिया, लेकिन मुझे हीरा नहीं मिला। मैं जानना चाहता हूँ कि आप हीरा कहाँ छिपाते हैं।' संत ने कहा, 'भाई, मैं जब भी बाहर जाता था तब हीरा तुम्हारे बिस्तर के नाचे रख देता था। तुम मेरा बिस्तर, कमरा और दूसरी सभी जगहों में हीरा खोजते थे, लेकिन अपना बिस्तर नहीं देखते थे। इसलिए तुम्हें हीरा नहीं मिला।' हम भी भगवान को खोजने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं, लेकिन भगवान तो हमारे मन म

शब्द और पंख

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प्रेरक कथा - शब्द और पंख एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे खुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और उससे बोला, "मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।" साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो। किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने कहा, "अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं, उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।" नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले वह वापस साधु के पास आ गया। यह देख साधु ने उसे समझाया, "ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है। इसलिए हमेशा अपने शब्दों को तौल कर बोलना चाहिए।"

बुरी आदतों को तुरंत छोड़ दें

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प्रेरक कथा - बुरी आदतों को तुरंत छोड़ दें   एक लोक कथा के अनुसार, एक पिता अपने बेटे की बुरी आदतों के कारण परेशान था। वह कई बार उसे समझा चुका था, लेकिन बच्चा हर बार यही कहता था कि वह बड़ा होकर ये आदतें छोड़ देगा। कुछ दिनों बाद उनके गांव में एक संत आए। संत बहुत ही विद्वान और सरल स्वभाव वाले थे। जो भी उनसे मिलने आता था, उससे आसानी से मिलते और भक्तों की समस्याओं का निराकरण करते थे। जब ये बात उस पिता को मालूम हुई, तो वह संत से मिलने पहुँचा और अपनी समस्या बता दी। संत ने उससे कहा कि तुम कल अपने बेटे को मेरे पास बाग में भेज देना। अगले दिन पिता ने अपने बेटे को संत के पास बताए गए बाग में भेज दिया। बच्चे ने संत को प्रणाम किया और दोनों बाग में टहलने लगे। कुछ देर बाद संत ने बच्चे को एक छोटा-सा पौधा दिखाया और पूछा कि इसे उखाड़ सकते हो? बच्चे ने कहा, 'ये कौन सा बड़ा काम है, मैं इसे अभी उखाड़ देता हूँ', और बच्चे ने पौधा उखाड़ दिया। थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को थोड़ा बड़ा पौधा दिखाया और उसे उखाड़ने के लिए कहा। बच्चा खुश हो गया, उसे ये सब एक खेल की तरह लग रहा था। बच्चे ने पौधे

Let's Kill Gandhi

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Let’s Kill Gandhi – written by Mr. Tushar A Gandhi         यह पुस्तक मैंने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में सेवा दौरान पुस्तकालय में पढ़ी थी। निरीक्षक (हिंदी अनुवादक) पद पर कार्य करते समय अनुवाद के ज्ञानार्जनोपरांत मेरी इच्छा इसके अनुवाद की हुई थी, लेकिन उस समय पुस्तक उपलब्ध न होने के कारण इच्छा अधूरी रह गई। सेवानिवृत्ति के पश्चात अपनी क्षुधा शांत करने के लिए अमेजन से यह पुस्तक मंगवाई और छोटा सा प्रयास करने का निश्चय किया जिससे हिंदी भाषी पाठकों तक इसकी पहुँच उपलब्ध करा सकूँ। मेरा यह भी प्रयास रहा है कि पुस्तक के भावों, विचारों, तथ्यों आदि को सरल भाषा में प्रस्तुत करूँ जिससे वे पाठकों के मन तक आसानी से पहुँच सकें। मैंने स्वयं को अपने विचारों को जोड़ने के लोभ से मुक्त रखा है। मैं यह दावा नहीं कर सकता कि मेरा अनुवाद उत्कृष्ट कोटि का है, क्योंकि अनुवादक की रचना में उसके शब्द-भंडार और शैली की छाप होती है जो मूल लेखक की शैली से भिन्न होना स्वाभाविक है।          मेरा अनुरोध है कि पाठक मेरे प्रयास का मूल्यांकन कर अपने विचारों से अवगत कराएँ और जहाँ कहीं भी सुधार की संभावना दिखाई