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Showing posts from 2019

सार्थक यज्ञ

एक बार युधिष्ठिर ने विधि-विधान से महायज्ञ का आयोजन किया। उसमें दूर-दूर से राजा-महाराजाऔर विद्वान आये। यज्ञ पूरा होने के बाद दूध और घी से आहुति दी गई, लेकिन फिर भी आकाश से घंटियों की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ी। जब तक घंटियाँ नहीं बजतीं, यज्ञ अपूर्ण माना जाता। वह सोचने लगे कि आखिर यज्ञ में कौन-सी कमी रह गई कि घंटियाँ सुनाई नहीं पड़ी। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से अपनी समस्या के बारे में बताया। श्रीकृष्ण ने कहा, 'किसी गरीब, सच्चे और निश्छल हृदय वाले व्यक्ति को बुला कर उसे भोजन कराएँ।'  श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को ऐसे एक व्यक्ति के बारे में बताया। यूधिष्ठिर उन्हें लेकर यज्ञ-स्थल पर आए। भोजन करने के बाद उस व्यक्ति ने ज्यों ही संतुष्ट होकर डकार ली, आकाश से घंटियाँ गूँज उठीं। यज्ञ की सफलता से सब प्रसन्न हुए। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, 'भगवन, इस निर्धन व्यक्ति में ऐसी कौन-सी विशेषता है कि उसके खाने के बाद ही यज्ञ सफल हो सका।' श्रीकृष्ण ने कहा, 'धर्मराज, इस व्यक्ति में कोई विशेषता नहीं है, यह गरीब है। दरअसल, आप ने पहले जिन्हें भोजन कराया, वे सब तृप्त थे। जो व्यक्ति पहले से

मतदान

धनीराम कभी किसी के लेने-देने में नहीं रहे। दुनियादारी से दूर, सरल स्वभावी और स्नेहिल धनीराम को गाँव के लोग चाचा कहते थे। लोग जानते थे कि अगर बच्चा भी सामने से निकले और चाचा को देख न पाए तो चाचा खुद आगे बढ़ कर उससे राम-राम कर लेंगे। धनीराम से राजीखुशी पूछने में लोगों को भी सुख मिलता था। एक निश्छल बड़प्पन-सा उनमें था, जिसके प्रति बरबस आदर उमड़ता था। बीते कुछ सालों से धनीराम थोड़े उदास रहने लगे थे, पर किसी को अपना दुःख नहीं सुनाते थे। जानते थे, किसी को दुःखड़ा सुनाने से होगा भी क्या ? जब भी चुनाव आता उनके चेहरे पर उम्मीद की एक किरण-सी दिखने लगती। वे बिना नागा हर चुनाव में वोट डालने जाते। भरसक जल्दी पहुँचने की कोशिश करते। इस बार भी पहुँचे। मतदान केंद्र पर इक्के-दुक्के मतदाता बी आ-जा रहे थे। अपना वोट डालने के बाद भी जब धनीराम बाहर नहीं गए तो मतदान अधिकारी ने थोड़े आवेश में उनसे पूछा, “ आपका वोट तो हो चुका है न चाचा ? खड़े क्यों हैं ? बाहर जाने का रास्ता उधर है। ” धनीराम ने विनय की, “ भइया, जरा लिस्ट देख कर यह बता दो कि मेरी पत्नी धनिया का वोट पड़ चुका है या नहीं ?” उनक

चार विकल्प

सामान को व्यवस्थित करके में बर्थ पर अधलेटा हो गया। आधी पढ़ी किताब निकाल ली और पढ़ने लगा। सामने की बर्थ पर एक परिवार आ बैठा। उसके पास ऊपर की बर्थ भी थी। फ़िलहाल उसने उस पर सामान रखा और नीचे की बर्थ पर आराम से सबके साथ बैठ गये। पति, पत्नी और एक बच्चे का वह परिवार बहुत शालीन और संभ्रांत लग रहा था। बातचीत से समझ में आया की यात्रा दिल्ली तक की है। उन्हें इस डिब्बे में बहुत वक्त गुज़ारना है। ट्रेन रेंगी तो बच्चे ने पिता से आग्रह किया कि वे उसे “ कौन बनेगा करोड़पति ” खिलाएँ। वक़्त खूब था। बच्चे के आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं था। पिता प्रश्न पूछते और चार विकल्प बताते। बच्चा बिना भूल किये सही उत्तर देता। कुछ सवाल उस दिन की यात्रा और ताज़ा ख़बरों से जुड़े हुए भी पूछे गये। बच्चे ने हर बार सही उत्तर दिया। मैं ही नहीं बगल की बर्थ के यात्री भी बच्चे की कुशाग्रता और तत्परता से प्रभावित होने लगे। मैं बच्चे की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका। मैं ने उसके पिता से उसका नाम जानना चाहा। उन्होंने बताया ‘ कुशाग्र ’ । मैंने भी दो-एक सवाल पूछे। उसने हर बार सही विकल्प को चुना। मैंने उसकी पीठ थपथपाई औ

नेता-शिष्य

वे गाँव की जमींदारी से उखड़ कर कस्बे में आ बसे थे। बड़ा लेकिन पुराने ढंग का मकान बनवाया। आजीविका के लिए उसका बहुत-सा हिस्सा किराए पर उठा दिया। राजनीति से भी जुड़ गये। कस्बा शहर में तब्दील हुआ तो राजनीतिक और आर्थिक हैसियत में भी इज़ाफ़ा हुआ। उन्होंने अपने बेटों को आगे बढ़ाया। सत्ता और संपत्ति बटोरने में वे पिता से बढ़ कर साबित हुए। जमींदारी के पुराने संस्कारों और महत्वाकांक्षाओं ने जोर मारा तो तय हुआ कि मकान को किरायेदारों से खाली करवा लिया जाए। फिर से ऐसा बनवाया जाए कि मेनगेट और रहवासी हिस्से के बीच एक बड़ा मैदाननुमा आँगन रहे। इससे रहवास की सुरक्षा होगी और कार्यकर्ताओं को जमा करके उसमें सभा भी की जा सकेगी। केंद्र या राज्य के बड़े नेता आएँगे तो उनका स्वागत-सम्मान भी हो सकेगा और उन्हें शहर में इस खानदान की पैठ एवं प्रतिष्ठा का एहसास भी कराया जा सकेगा। बेटों ने सभी किरायेदारों को अंतिम तारीख दे दी। सब डर के मारे मकान खाली करके चले गये। डटे रहे तो एक मास्टरजी। उन्होंने बेटों के पिता को स्कूल में पढ़ाया था। कभी-कभी घर पर भी पढ़ा दिया करते थे। कभी कोई शुल्क नहीं लिया था। किराया भी

एक चुटकी ईमानदारी

एक संत ने ग्रामीणों को खाने पर आमंत्रित किया। अचानक याद आया कि रसोई में नमक तो सुबह ही खत्म हो गया। संत शिष्य से बोले, “ जरा बाज़ार से एक पुड़िया नमक लेता आ। ये ध्यान रखना कि नमक सही दाम में खरीदना, न अधिक पैसे देना और न कम। ” शिष्य ने पूछा, “ अगर कुछ मोल-भाव करके मैं कम पैसे में नमक लाता हूँ तो इसमें हर्ज ही क्या है ?” संत बोले, “ ऐसा करना हमारे गाँव को बर्बाद कर सकता है। ” सभी संत की बात सुन रहे थे। एक व्यक्ति बोला, “ महाराज, कम दाम पर नमक लेने से अपना गाँव कैसे बर्बाद हो जाएगा ?” संत बोले, “ सोचो, कोई नमक कम दाम में क्यों बेचेगा ? तभी न जब उसे पैसों की सख्त ज़रूरत हो। और जो कोई भी उसकी इस स्थिति का फायदा उठाता है, वह उस मजदूर का अपमान करता है, जिसने कड़ी मेहनत से नमक बनाया होगा। शुरू में समाज में कोई बेईमानी नहीं करता था, लेकिन धीरे-धीरे हम लोग इसमें एक-एक चुटकी बेईमानी डालते गए और सोचा कि इतने से क्या होगा, लेकिन खुद ही देख लो, हम कहाँ पहुँच गए हैं ! आज हम एक चुटकी ईमानदारी के लिए तरस रहे हैं। ”

सकारात्मक सोच का फल

किसी गाँव में दो गरीब किसान थे। दोनों के पास थोड़ी-थोड़ी जमीन थी, उसी जमीन से खाने-पीने की व्यवस्था होती थी। संयोग से दोनों की मृत्यु एक साथ ही हो गई। दोनों की आत्माएँ यमलोक पहुँचीं तो यमराज ने कहा, “ तुम दोनों का जीवन बहुत अच्छा रहा, अगले जन्म में क्या बनना चाहते हो ?” ये सुनकर एक किसान ने गुस्सा करते हुए कहा, “ मैं तो पूरे जीवन भर कंगाल ही रहा। मैंने दिन-रात कड़ी मेहनत की, खेत में बैलों की तरह काम किया, लेकिन एक-एक पैसे के लिए मेरा परिवार तरसता रहा। ऐसे जीवन को अच्छा कैसे बोल सकते हैं ?” यमराज ने कहा, “ ठीक है, अब अगले जन्म में तुम क्या चाहते हो ?” किसान ने कहा, “ भगवान, मुझे अगला जन्म ऐसा दीजिए कि मुझे कभी भी किसी को कुछ देना न पड़े, मुझे चारों तरफ से धन मिले और मुझे काम भी न करना पड़े। ” यमराज ने तथास्तु कह दिया। दूसरे किसान ने यमराज से कहा, “ मुझे जीवन में सब कुछ मिला था। अच्छा परिवार था, थोड़ी जमीन थी, जिससे मैं अपना और अपने परिवार का पालन कर रहा था। जीवन में सुख-शांति थी। बस एक ही कमी थी कि कभी-कभी मैं अपने घर आए भूखों को खाली हाथ लौटा देता था, क्योंकि मेरे प

आत्महत्या - उचित या अनुचित

एक व्यक्ति ने अपने घर में प्रतिदिन होने वाली कलह से तंग आकर आत्महत्या करने का विचार किया। लेकिन आत्महत्या का निर्णय लेना इतना आसान भी नहीं था। परिवार के भविष्य को लेकर वह चिंतित हो गया। असमंजस की स्थिति में वह महर्षि रमण के आश्रम में गया। महर्षि को अपनी स्थिति की जानकारी देकर आत्महत्या के बारे में उनकी राय जाननी चाही। महर्षि उस समय आश्रमवासियों के भोजन के लिए पत्तलें बनाने में व्यस्त थे। पत्तल बनाने में महर्षि की तल्लीनता और परिश्रम को देख उसे आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, “ स्वामी जी ! आप इन पत्तलों को इतने परिश्रम से बना रहे हैं, लेकिन थोड़ी देर में भोजन के बाद ये पत्तलें कूड़े में फेंक दी जाएँगी। ” महर्षि बोले, “ सही कहा तुमने, मगर किसी वस्तु का पूरा उपयोग करके उसे फेंकना बुरा नहीं है। गलत तो तब है, जब उपयोग किए बिना उसे अच्छी अवस्था में ही फेंक दिया जाए। आप सुविज्ञ हैं, मेरे कहने का आशय समझ गए होंगे। ” व्यक्ति को समझ आ गया कि जब तक जान है, जीने का उत्साह बने रहना चाहिए। मानव जीवन दुर्लभ है और उसने आत्महत्या का विचार त्याग दिया।

अनूठी मिसाल

अपने घर का नवीनीकरण करने के लिए एक जापानी अपने मकान की दीवारें तोड़ रहा था। जापान में लकड़ी की दीवारों के बीच खाली जगह होती है यानी दीवारें अंदर से पोली होती हैं। जब वह लकड़ी की दीवारों को तोड़ रहा था तभी उसने देखा कि दीवार के अंदर की तरफ लकड़ी पर एक छिपकली बाहर से उसके पैर पर ठुकी कील के कारण एक ही जगह पर जमी पड़ी है।  जब उसने यह दृश्य देखा तो उसे बहुत दया आई, पर साथ ही वह जिज्ञासु भी हो गया। जब उसने आगे जाँच की तो पाया कि वह कील तो उसके मकान बनते समय पाँच साल पहले ठोकी गई थी। एक छिपकली इस स्थिति में पाँच साल तक जीवित थी। दीवार के अंधेरे पार्टीशन के बीच बिना हिले-डुले?  उसकी समझ से परे था कि एक छिपकली, जिसका एक पैर एक ही स्थान पर पिछले पाँच साल से कील के कारण चिपका हुआ था और जो अपनी जगह से एक इंच भी न हिली थी, वह कैसे जीवित रह सकती है? छिपकली अब तक क्या करती रही है और कैसे अपने भोजन की जरूरत को पूरा करती रही है, यह देखने के लिए उसने अपना काम रोक दिया।  थोड़ी ही देर बाद वहाँ दूसरी छिपकली प्रकट हुई, वह अपने मुँह में भोजन दबाए हुए थी और आकर उस फंसी हुई छिपकली को भोजन खिलाने

संन्यास (बुद्ध कथा)

एक बार भगवान बुद्ध दोपहर के समय एक स्थान पर भिक्षाटन से प्राप्त भिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उसी समय पोतलिय नामक एक गृहपति वहाँ आया। बुद्धदेव ने उससे कहा, "आओ गृहपति! आसन पर विराजमान हो।" पोतलिय ने कहा, "भगवन! आप मुझे 'गृहपति' कह कर संबोधित न करें, क्योंकि मैंने अपने घर को त्याग दिया है।" तथागत ने कहा, "नहीं गृहपति, तुम्हारा व्यक्तित्व एवं चर्या तुम्हें गृहपति ही सिद्ध करती है।" पोतलिय ने फिर से अपनी बात रखते हुए कहा, "भगवन! मैंने अपनी खेतीबाड़ी का काम छोड़ दिया है। खरीद-बिक्री के व्यवहार त्याग दिए हैं। मेरे पास जो भी धन-धान्य था, सभी अपने पुत्रों को बांट दिया है। मैं तो सिर्फ खाने-पहनने से ही वास्ता रखता हूँ।" "मगर गृहपति, तू यह समझता है कि तूने घर के सारे व्यवहार-उच्छेद कर दिए हैं, यह तेरी सबसे बड़ी भूल है। वास्तविक व्यवहार-उच्छेद इस तरह नहीं होता।" "तब वास्तविक व्यवहार-उच्छेद कैसे होता है भगवन?" पोतलिय के सवाल के जवाब में बुद्धदेव बोले,"गृहपति सुनो! हिंसा, लोभ, क्रोध, अभिमान व चुगली करने का त्याग है - व्य

नागचंद्रेश्वर मंदिर

नागचंद्रेश्वर मंदिर ( नागराज तक्षक का निवास-स्थल)  की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही भक्तों को दर्शन करने के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं कि यह प्रतिमा नेपाल से यहाँ लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शैया पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और माँ पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शैया पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। पौराणिक मान्यता सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा प्रभु के सानिध्य में ही वास करने लगा। महाकाल के वन में वास करने से पूर्व उ

सुखद जीवन के लिए चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियों में हर समस्या का समाधान मिलता है। जीवन की हर चुनौती में चाणक्य नीति सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। उनकी नीतियों का पालन करके जीवन में शांति की स्थापना की जा सकती है। ज्ञानियों की बातों पर अमल करें चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई ज्ञानी व्यक्ति गरीब है तो भी हमें उसकी बात का अनुसरण करना चाहिए। ना करें अन्न का अपमान चाणक्य के अनुसार आपकी धाली से अन्न का एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो आपके घर में कभी भी सुख-समृद्धि का वास नहीं होता है। दांपत्य जीवन में ना हो कपट पति-पत्नी के मधुर रिश्ते में यदि कपट का स्थान है और वो एक-दूसरे से बातें छुपाते हैं तो वो रिश्ता नहीं चल पाता है। ऐसे में घर में कभी भी सुख-समृद्धि नहीं आती है। धन का अपव्यय जिस घर में धन गलत कार्यों में प्रयोग किया जाता है, वहाँ हमेशा कलह की संभावना बनी रहती है। जिससे वहाँ कभी खुशनुमा माहौल नहीं रहता है, और माता लक्ष्मी भी रुष्ट हो जाती हैं।

यम द्वितीया पर यमुना स्नान दिलाता है यम-यातना से मुक्ति

पाँच दिवसीय पर्वों के महापर्व दीपावली की अंतिम कड़ी है – भाईदूज। भाईदूज के दिन दीपोत्सव का समापन होता है।   भाईदूज के दिन भाई अपनी बहनों के घर जाकर भोजन करते हैं तथा बहनें भाई की दीर्घायु की कामना के लिए यमराज की पूजा करती हैं। आज के दिन यमराज की बहन यमुना और चित्रगुप्त सहित यमदूतों की पूजा भी करनी चाहिए। ब्रजक्षेत्र में भाई-बहन का यमुना में स्नान करना परम पवित्र व विशिष्ट अनुष्ठान माना जाता है।  कथा है कि सूर्य-पुत्री यमुना का एक ही भाई यमराज था, वह उसके घर नहीं आ पाता था। यमुना बार-बार उसे बुलाती, परंतु कामकाज की व्यस्तता की वजह से वह नहीं आ पाता। एक बार इसी दिन (कार्तिक शुक्ल द्वितीया) को अचानक यमराज, यमुना के घर आ पहुँचा। यमुना ने खूब आवभगत-सत्कार किया। भोजन करवाया और भाई को तिलक लगाया। यमुना से प्रसन्न भाई यमराज ने उससे कुछ मांगने को कहा। यमुना ने कहा, “ भाई, बस साल में एक बार इसी तरह आज के दिन तुम मेरे घर आ जाया करो। साथ ही यह भी वर दो कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका भोजन ग्रहण करे व उपहार दे, उसे तुम्हारा भय न हो। ” यमराज ने यमुना की बात मान ली। तभी से

Modi-Xi Jinping meet: Mahabalipuram monuments closed to tourists

Modi-Xi Jinping Meet: Mahabalipuram monuments closed to tourists.   मोदी-शी जिनपिंग की भेंट : महाबलीपुरम स्मारक पर्यटकों हेतु बंद The News Minute, 8-10-19 - 11:48 Entry to public has been suspended from Tuesday till the weekend.  मंगलवार से सप्ताहांत तक आम जनता का प्रवेश निलंबित। The Archaeological Survey of India (ASI) has temporarily shut down tourism to monuments in Mahabalipuram ahead of the bilateral summit between Prime Minister Narendra Modi and Chinese Premier Xi Jinping. Members of the public will not be allowed at popular tourist attractions located in the temple town beginning Tuesday. The two heads of state are set to meet between October 11 and 13. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई।) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन से पहले महाबलीपुरम स्मारकों के पर्यटन को अस्थाई रूप से बंद कर दिया है। मंगलवार से मंदिर नगर में स्थित लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में जाने की आम जनता को अनुमति नहीं होगी।  दोनों राष्ट्राध्