हकीकत
लघु कथा - हकीकत राम में स्कूल का होमवर्क पूरा कर जब उनकी नन्हीं बिटिया करीने से बस्ते में कॉपी-किताबें सजाने लगी, तो वे उसकी बलसुलभ कार्यकुशलता को देखकर अभिभूत हो उठे। वे सोचने लगे कि बड़ी होकर जरूर यह मेरा नाम रोशन करेगी। अभी से ही मेरा कितना ख्याल रखती है। सुबह जब वे उसे स्कूल बस तक छोड़ने सड़क तक जाते, तो वह बार-बार उसे स्कूल बस तक छोड़ने सड़क तक जाते, तो वह बार-बार उन्हें रोकना चाहती, "डैड! अब मैं दूधपीती बच्ची थोड़े ही न हूँ! आप आराम करें...... रिलेक्स..... मैं स्वयं ही चली जाऊँगी।" "नहीं बेटे! यह तो मेरी ड्यूटी है। जब तक तुम्हें बस में न बिठा दूँ, मुझे चैन कहाँ?" और उसके ना-नुकुर करने के बावजूद वह उसे स्कूल बस में बिठाकर ही दम लेते। वे यह सोचकर कि बिटिया उन्हें जरा भी कष्ट देना नहीं चाहती, मन ही मन फूले नहीं समाते और सोचते ईश्वर सबको ऐसी ही संतान दे। "डैड...! किस सोच में डूब गए आप?" स्कूल बैग को अलमारी में रखकर वह उनसे मुखातिब हुई। "बस यों ही...... बेटे, कितनी प्यारी है, तू!" उन्होंने उसका माथा चूमते हुए कहा। "मुझे...