सद्गुणों की महक
प्रेरक कथा - सद्गुणों की महक
संत सदानंद के पास एक युवक आया। उनके चरण छूकर उन जैसा आचरण हो जाए, ऐसा आशीर्वाद मांगने लगा। वहां के वातावरण में व्याप्त फूलों की सुगंध की प्रशंसा करते हुए उसने संत से कुछ ज्ञान देने को कहा तो संत बोले, 'बेटा, अपना जीवन सदा इन फूलों की भांति रखना ताकि तुम्हारे पास आने वाले अच्छा महसूस करें। पर स्मरण रहे, फूल सदा अपने आसपास का वातावरण ही महकाते हैं, जबकि व्यक्ति के सद्गुणों की कोई सीमा नहीं होती। यह महक चारों दिशाओं में समान रूप से महकती है। यहाँ की पुष्प-लताओं को देखो, यह वर्षों से आंधी-तूफानों का सामना करके भी डट कर खड़ी हैं। जानते हो क्यों, क्योंकि यह समय और वातावरण के अनुरूप झुकना जानती हैं और तेज़ हवाओं के साथ स्वयं को झुका लेती हैं, इसीलिए इनका अस्तित्व बना हुआ है। याद रखना, मृत्यु के पश्चात व्यक्ति का धन सगे-संबंधी ले लेते हैं और शरीर को अग्नि जला देती है। मगर उसके पुण्य-कर्म और सद्गुण ही उसे बरसों तक लोगों के हृदयों में जीवित रखते हैं। यह बात तुम अगर जीवन में उतार लो तो इसमें संशय नहीं कि अन्य लोग भी तुम्हारे चरण-स्पर्श करने में गर्व महसूस करेंगे।'
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