चूड़ियाँ

लघु कथा - चूड़ियाँ

नज़्मसुभाष

'तुमने शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?' उसने फोन पर ताना मारा।
'वो घरवाले....' हकलाते हुए कहा उसने।
'हाँ, मोटा दहेज जो मिला होगा, कसमें हमारे साथ, निकाह किसी और से......!'
'अब क्या बताऊँ? तुम समझती कहाँ हो?'
'हाँ, नासमझ तो मैं थी ही। खैर, मेरा भी निकाह होने वाला है।'
'अरे वाह..... कहाँ से?'
'एक कश्मीरी लड़के से बात चल रही है।'
'वाह! तुम्हारे तो भाग्य जग गए, मगर इतनी दूर?'
'नजदीक वाले तो चुपचाप निकल गए। अब दूर ही सही।'
'अरे छोड़ो.... खुश तो हो न!'
'खुश तो हूँ... आखिर मुझे सेब पसंद थे ही और मेरी ससुराल में सेब के कई बागान हैं....।'
वो खिलखिला कर हँसी।
'सेब तो मुझे भी पसंद हैं, पर मेरी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ?'
अफसोस में उसने गर्दन झटक दी।
'दूरियाँ तुमने बढ़ाई थीं मैंने नहीं। निकाह होने दो, सीजन में तुम्हें सेब भेज दिया करूँगी।'
'सच?'
'यकीन कर सकते हो!'
'बिल्कुल। यकीन तो है तुम पर।'
फोन पर हुई इस बात को दो साल बीत गए। अपनी घर-गृहस्थी के चक्कर में तो सब कुछ भूल चुका था कि आज निहकत का फोन आ गया।
'हेलो समीर...'
'अरे निहकत तुम। कैसी हो?'
'एकदम ठीक हूँ।'
'कहाँ हो आजकल?'
'फिरोजबाद में...'
'फिरोजाबाद! तुम्हारा निकाह तो कश्मीर में होने वाला था।'
'निकाह तो तुमसे भी होने वाला था।' उसने लम्बी आह भरी और आगे जोड़ा, कश्मीर ख्यालों में ही रह गया।'
'ओह... मैं तो सेब की उम्मीद में बैठा था।'
'अब सेब तो मुश्किल हैं, तुम कहो तो चूड़ियाँ भेज दूँ।'

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