एक चुटकी ईमानदारी


एक संत ने ग्रामीणों को खाने पर आमंत्रित किया। अचानक याद आया कि रसोई में नमक तो सुबह ही खत्म हो गया। संत शिष्य से बोले, जरा बाज़ार से एक पुड़िया नमक लेता आ। ये ध्यान रखना कि नमक सही दाम में खरीदना, न अधिक पैसे देना और न कम।



शिष्य ने पूछा, अगर कुछ मोल-भाव करके मैं कम पैसे में नमक लाता हूँ तो इसमें हर्ज ही क्या है?”



संत बोले, ऐसा करना हमारे गाँव को बर्बाद कर सकता है।



सभी संत की बात सुन रहे थे। एक व्यक्ति बोला, महाराज, कम दाम पर नमक लेने से अपना गाँव कैसे बर्बाद हो जाएगा?”



संत बोले, सोचो, कोई नमक कम दाम में क्यों बेचेगा? तभी न जब उसे पैसों की सख्त ज़रूरत हो। और जो कोई भी उसकी इस स्थिति का फायदा उठाता है, वह उस मजदूर का अपमान करता है, जिसने कड़ी मेहनत से नमक बनाया होगा। शुरू में समाज में कोई बेईमानी नहीं करता था, लेकिन धीरे-धीरे हम लोग इसमें एक-एक चुटकी बेईमानी डालते गए और सोचा कि इतने से क्या होगा, लेकिन खुद ही देख लो, हम कहाँ पहुँच गए हैं! आज हम एक चुटकी ईमानदारी के लिए तरस रहे हैं।

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