नेता-शिष्य


वे गाँव की जमींदारी से उखड़ कर कस्बे में आ बसे थे। बड़ा लेकिन पुराने ढंग का मकान बनवाया। आजीविका के लिए उसका बहुत-सा हिस्सा किराए पर उठा दिया। राजनीति से भी जुड़ गये। कस्बा शहर में तब्दील हुआ तो राजनीतिक और आर्थिक हैसियत में भी इज़ाफ़ा हुआ। उन्होंने अपने बेटों को आगे बढ़ाया। सत्ता और संपत्ति बटोरने में वे पिता से बढ़ कर साबित हुए।

जमींदारी के पुराने संस्कारों और महत्वाकांक्षाओं ने जोर मारा तो तय हुआ कि मकान को किरायेदारों से खाली करवा लिया जाए। फिर से ऐसा बनवाया जाए कि मेनगेट और रहवासी हिस्से के बीच एक बड़ा मैदाननुमा आँगन रहे। इससे रहवास की सुरक्षा होगी और कार्यकर्ताओं को जमा करके उसमें सभा भी की जा सकेगी। केंद्र या राज्य के बड़े नेता आएँगे तो उनका स्वागत-सम्मान भी हो सकेगा और उन्हें शहर में इस खानदान की पैठ एवं प्रतिष्ठा का एहसास भी कराया जा सकेगा।

बेटों ने सभी किरायेदारों को अंतिम तारीख दे दी। सब डर के मारे मकान खाली करके चले गये। डटे रहे तो एक मास्टरजी। उन्होंने बेटों के पिता को स्कूल में पढ़ाया था। कभी-कभी घर पर भी पढ़ा दिया करते थे। कभी कोई शुल्क नहीं लिया था। किराया भी वे उतना ही देते थे, जितना दूसरे किरायेदार देते थे। बेटों ने उन्हें बुलाया और मकान खाली करने के लिए दो दिन की मोहलत और दे दी।

चिंतित बूढ़े मास्टरजी को बेटों के पिता पर भरोसा था। उन्होंने उन्हीं से निवेदन करने का निश्चय किया। दनदनाती चली आती जीप मकान के अहाते में रुकी। मास्टरजी जीप के सामने जा कर खड़े हो गये। कंधे पर बंदूक लटकाए शिष्य ने जीप से उतर कर नमन किया। मास्टरजी गद्गद् हो गए और उनमें हिम्मत आ गई तो कहा, आपके बेटों ने दो दिन में मकान खाली कर देने को कहा है। मैं बुढ़ापे में. . . .

शिष्य ने वाक्य पूरा नहीं होने दिया और कहा, बेटों को मालूम होना चाहिए कि आपने उनके पिता को पढ़ाया है। उनमें जरा भी अक्ल नहीं है। आप पाँच दिन में मकान खाली कर सकते हैं।

मास्टरजी अपने नेता-शिष्य का मुँह ताकते रह गये।
डॉ. जयकुमार जलज (हिंदी मिलाप)

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