चार विकल्प
सामान को व्यवस्थित करके में बर्थ पर अधलेटा हो गया। आधी
पढ़ी किताब निकाल ली और पढ़ने लगा। सामने की बर्थ पर एक परिवार आ बैठा। उसके पास
ऊपर की बर्थ भी थी। फ़िलहाल उसने उस पर सामान रखा और नीचे की बर्थ पर आराम से सबके
साथ बैठ गये। पति, पत्नी और एक बच्चे का वह परिवार बहुत शालीन और संभ्रांत लग रहा
था। बातचीत से समझ में आया की यात्रा दिल्ली तक की है। उन्हें इस डिब्बे में बहुत
वक्त गुज़ारना है।
ट्रेन रेंगी तो बच्चे ने पिता से आग्रह किया कि वे उसे “कौन बनेगा करोड़पति” खिलाएँ। वक़्त खूब था। बच्चे के
आग्रह को टालने का सवाल ही नहीं था। पिता प्रश्न पूछते और चार विकल्प बताते। बच्चा
बिना भूल किये सही उत्तर देता। कुछ सवाल उस दिन की यात्रा और ताज़ा ख़बरों से
जुड़े हुए भी पूछे गये। बच्चे ने हर बार सही उत्तर दिया।
मैं ही नहीं बगल की बर्थ के यात्री भी बच्चे की कुशाग्रता
और तत्परता से प्रभावित होने लगे। मैं बच्चे की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका। मैं
ने उसके पिता से उसका नाम जानना चाहा। उन्होंने बताया ‘कुशाग्र’। मैंने भी दो-एक सवाल पूछे। उसने हर
बार सही विकल्प को चुना। मैंने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, “कुशाग्र! तुम्हारा नाम तो बहुत ही अच्छा है।
यथा गुण तथा नाम। तुम्हारे पापा का नाम क्या है?”
बच्चा चुप।
मैंने फिर पूछा। बच्चे ने अपना उत्सुक चेहरा तो मेरी ओर
किया, पर उत्तर फिर भी नहीं दिया। पिता के चेहरे पर व्यग्रता और आवेश उभरने लगा।
बोले, “बेटा! अंकल क्या पूछ रहे हैं? उत्तर क्यों नहीं देते? उत्तर दो।”
बच्चा झुँझला गया था। मुझ पर आरोप जड़ते हुए बोला, “सवाल पूछते हैं, पर साथ में चार
विकल्प तो बताते नहीं।”
सबको झटका-सा लगा। जैसे दौड़ती ट्रेन में आपातकालीन ब्रेक
लगा हो। कुशाग्र के मात-पिता के ही नहीं हम सबके चेहरे भी उतर गए।
डॉ. जयकुमार जलज (हिंदी मिलाप)
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