Shakti Chalisi

शक्ति चालीसी

(गीताप्रेस गोरखपुर के कल्याण से साभार)

(जिस तरह गीता आदि पवित्र ग्रंथों के अनुवाद फारसी, उर्दू में हुए हैं उसी तरह योग्य व्यक्तियों द्वारा संस्कृत स्तोत्रों के अनुवाद एवं स्वतंत्र स्तोत्र भी अन्य भाषाओं में लिखे गए हैं। प्रस्तुत पुस्तक शक्ति चालीसी अनुमानः 100 वर्ष पूर्व उर्दू रामायण के रचयिता (स्वर्गवासी) लाला शंकरदयाल 'शुश्तर' द्वारा लिखी गई थी। इसमें उर्दू के चालीस मोखम्मस (पाँच चरण का छंद) हैं जो स्तोत्ररूप में विशेष आकर्षक हैं। इसकी रचनाशैली, शब्दविन्यास, प्रसादपूर्ण मर्मस्पर्शी भावों को देखकर सहसा हृदयोद्रेक होने लगता है और शांत होकर पाठ करने की प्रबल इच्छा होने लगती है। पाठक स्वयं अनुभव करेंगे। इसके पाठ करने से कितनी ही बार अभीष्ट फल प्राप्त होते देखा गया है। गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण के अंक की यह दुर्लभ रचना इंटरनेट पर उपलब्ध न होने के कारण अधिक के अधिक धार्मिक प्रेमीजनों तक पहुँचाने का प्रयास है)


श्री दुर्गायै नमः

नमस्कार उसको ही जिससे है पैदा ख़ल्क़ में हर शै।
पये क़त्ले सितमगारां जो पै दर पै रहे दर पै।।
मचा जब ग़ुल कि अय दुर्गा ये हंगामेतरह्हुम है।
मदद की बरमला सब देवता कहने लगे जय जय।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।1।।


तू वेदों में है विद्या और दानाओं में दानाई।
तनो मन्दो में ताक़त है तवानों में तवानाई।।
दिलों में भक्ति शिव में शक्ति गोयाओं में गोयाई।
समाई अल्गरज़ हर रंग में हर शक्ल में माई।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।2।।


तुई गुल में बशक्ले रंगो बूयेगुल दरआई है।
तुई मुल में वरंगे नश्श्ये सहबा समाई है।।
निगाहेदीदये दिल में बशक्ले रोशनाई है।
शिनासाई की ताक़त कब किसी मर्दुम ने पाई है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।3।।


बसी है ताज़गी होकर चमन में गुल में बू होकर।
बशर के दिल में मेहरो उल्फ़तो आदात ख़ू होकर।
सदफ़ में आबताब और मोतियों में आबरू होकर।
निगह में बनके बीनाई ज़बाँ में गुफ़्तगू होकर।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।4।।


बशर में है तबीअत और तबीअत में कशिश होकर।
कहीं शक्ले अता होकर कहीं शक्ले खलिश होकर।।
दिलों में नीयत और नीयत में है दादोदहिश होकर।
क़मर में ताब दुर में आब बिजली में तपिश होकर।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।5।।


नफ़ीसों में नफ़ासत है तो मरग़ूबों में मरग़ूबी।
शरीफ़ों में शराफ़त और महबूबों में महबूबी।।
शजर में ताज़गी गुल में महक गुलज़ार में ख़ूबी।
दिले दरया में शक्ले मौज मौजों में खुशस्लूबी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।6।।


नुमायां है ज़नब में रास में कैवां में नैय्यर में।
ज़ोहल में ज़ोहरा में मिर्रीख में माहेमुनव्वर में।।
शजर में शाख में गुल में समर में बर्ग में बर में।
चमन में दश्त में कोहसार में दीवार में दर में।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।7।।


नमायां गुल में गुल के रंगो बू में गुल्के रू में है।
तनेख़ाकी में दिल में जान में जी में जिगर में है।।
निगह में मरदुमक में चश्म में तारे नज़र में है।
कहीं आतिश में है पिनहां कहीं पैदा शरर में है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।8।।


मुजस्सिम नूरेक़ुदरत नामुजस्सिम सूरते बू है।
बगल में शक्ले दिल मिस्ले जिगर हमदोशपहलू है।।
जमीं क्या बल्कि अफ़ला के ज़मी पर ग़ुल यह हरसू है।
तुही तू है, तुही तू है, तुही तू है, तुही तू है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।9।।


अयां मरदुम सिफ़त पिनहां मिसाले नुरे मरदुम हो।
कहीं ज़ाहिर कहीं मख़फ़ी कहीं पैदा कहीं गुम हो।।
ग़ुबारे मासियत, गर्देख़ता धोने को क़ुल्ज़ि हो।
तुम्हीं तुम हो तुम्हीं तुम हो तुम्हीं तुम हो तुम्हीं तुम हो।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।10।।


यही नूरे मुबारक दीदये मरदुम का तारा है।
इसी से रौशन अफ़ला के बरींपर यह सितारा है।
कहीं पिनहां कहीं हर जुज़ोकुल में आशिकारा है।
हरइक जा अल्ग़रज़ रौशन ये नूरे आलम आरा है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।11।।


पनाहेदामने दौलत में गर्दिश से फ़लक आया।
बजोशे मादरी मादर ने लुत्फ़ उस पर भी फरमाया।।
छुटा क़ैदे अलम से इस्मे अक़दस लब पै जब लाया।।
महामाया महामाया महामाया महामाया।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।12।।


सिपहरे मेहर हो औनैय्यरे फैज़ो अता देवी।
बिनाये बख़्शिशो शाहंशहे अरजो, समां देवी।।
मदद के वक़्त मुश्किल में पुकारा जिसने या देवी।
महादेवी महादेवी महादेवी महादेवी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।13।।


तुही है किशवरे कौनेन की फ़रमांर वा शक्ती।
तुही लश्करकुशो, दुश्मनकुशो किशवरकुशा शक्ती।।
ज़बां पर है सदाशिव विष्णु ब्रह्मादिक के या शक्ती।
महाशक्ती महाशक्ती महाशक्ती महाशक्ती।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।14।।


जो दे मम्लूक से मालिक को निस्बत है ये नादानी।
सदाशिव इन्द्र सन्कादिक तुम्हें कहते हैं लासानी।।
जनाबे विष्णु खुद फ़रमाते हैं वक्ते सनाख्वानी।
महारानी महारानी महारानी महारानी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।15।।


किसी बेइल्म ने गर सिद्क़ेनीयत से कहा विद्या।
तुफ़ैले नाम से हासिल हुई लाइन्तहा विद्या।।
मिली मुक्त उसको जो शामोसेहर कहता रहा विद्या।।
महाविद्या महाविद्या महाविद्या महाविद्या।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।16।।


यमे फ़ैज़ो करम हो चश्मये जूदो सखा काली।
अतापाशो ख़तापोशो जहाँ हाजतरया काली।।
उसे कब काल का खटका रहा जिसने कहा काली।
महाकाली महाकाली महाकाली महाकाली।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।17।।


सरापा रोशनी अक्से कफ़क से चाँद ने पायी।
तजल्ली नक्शे पासे नैय्यरे आज़म के हाथ आयी।।
छुटा अन्दोहसे जिसने कहा वक्ते जेवीं सायी
महामायी महामायी महामायी महामायी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।18।।


बक़ा ज़ाते मुबारक को फ़क़त है और सब फ़ानी।
तुम्हीं से आसमां पर चेहरये नैय्यर है नूरानी।।
मिटे कुल्फ़त पुकारे गरबशर वक्ते परेशानी।
जगतरानी जगतरानी जगतरानी जगतरानी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।19।।


मोहाफ़िज तुम हो दिल की रूहतन की जान की दुर्गा।
मोआविन हो अजल से वक्ते फिक्रोबेकसी दुर्गा।।
रहे बेख़ौफ़ इन्सां लब से गर निकले कभी दुर्गा।
सिरी दुर्गा सिरी दुर्गा सिरी दुर्गा सिरी दुर्गा।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।20।।


अगर वह नख्ले क़ुदरत रंगो बू ज़ाहिर न फरमाता।
गुलिस्तानेदो आलम किस रविशसे ताज़गी पाता।।
फला फूला वो नख्लआसा कहा जिसने किया दाता।
जगतमाता, जगतमाता, जगतमाता, जगतमाता।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।21।।


मचा जब ग़ुलकि दस्ते शुंभसे तकलीफ़ पायी है।
दोहाई है दोहाई है दोहाई है दोहाई है।।
महारानीने की इस रंगसे जंग आज़माई है।
कि पीरेचर्ख़ की अक्ले रसा चक्कर में आई है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।22।।


मुक़ाबिल मिस्ले आईना दग़ासे जब कि शुंभ आया।
तो कैसे कैसे किस किस सूरतों से क़त्ल फ़रमाया।।
हुये आसारेमहशर तब ये लबपर हर बशर लाया।
तरह्हुम हो तरह्हुम हो तरह्हुम हो महामाया।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।23।।


लड़ा जब चंडमुंड आकर तो कैसे शान से मारा।
मियाने सेहने मक़तल खींच खंजर म्यान से मारा।।
दिलावर जिस क़दर राक्षस थे सबको जान से माराषष
बहुत तीर अफ़गनों को एकदम में बान से मारा।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।24।।


ग़ज़ब से रज़्मगह में रक्तबीज इक आन में मारा।
मिटाया दो जहाँ से ख़दश ओ ख़ौफ़ो ख़ललसारा।
बजुज़ ज़ाते मुबारिक कौन हो सकता था रज़्मआरा।
करा हिम्मत करा कुदरत करा ताक़त करा यारा।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।25।।


लड़ाई की उरू से फ़तर से मिल मिल के देवी ने।
सदा कुश्तों के पुल बाँधे हैं पल में मेरी देवी ने।।
दिया पानी न पीने सरकशों को हिल के देवी ने।
निकाले हौसले सब रज़्मगह में दिल के देवी ने।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।26।।


दग़ा में आबो ताबो तेज़िवो शमशीर हैं दुर्गा।
कहीं बुर्रिश कहीं खूंरेज़िये शमशीर हैं दुर्गा।।
शररबारी शररअंगेज़िये शमशीर हैं दुर्गा।
ख़मो चम और कयामत ख़ेजिये शमशीर हैं दुर्गा।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।27।।


ज़फ़र में क़ब्ज़ये ख़ंजर में हरदम धाक रहती है।
ज़मीं दिल से फ़िदाये नक़्श पाये पाक रहती है।।
जेबीने अर्शआला पर क़दम की ख़ाक रहती है।
दिलेरी और खुजाअत बस्तये फ़ितराक रहती है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।28।।


मियाने रज्मगह हैं जौहरे तेग़े दोदमकाली।
मियाने रज्मगह हैं कुल़्ज़में जाहो हशम काली।।
पये बेचारगां हैं दाफ़ये अनदोहो ग़म काली।
मुईनो चारा साज़ो राफ़ओ जौरो सितम काली।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।29।।


सदा बानावरी में मुश्तहिर है आनबान उनकी।
है नाविक कहकशां क़ौसे क ज़ह अदना कमां उनकी।।
सिवा अन्दाज़ये वह्मों गुमां से भी है शां उनकी।।
जेबीनो सर से चौखट चूमता है आसमां उनकी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।30।।


सवारी शेर नर की भगवती को दिल से प्यारी है।
रविश पर जिस के सदके तौसने वादे बहारी है।।
हर इक मजबूर की मंजूर ख़ातिर पासदारी है।
करम है हिल्म है पासेसखुन है बुर्दबारी है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।31।।


जो हैं ख़ाक उफ़तादा उनपे चश्मे सरफ़राज़ी है।
तबीअत में तरह्हुम इस्तआनत चारासाज़ी है।।
सखा है जूद है मेहरो वफ़ा है पाकवाज़ी है।
तहम्मल है अता है हिल्म है आजिज़नेवाज़ी है।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।32।।


अजल से है पसन्दे ख़ातिरे आतिर ख़ता पोशी।
सदा मद्देनज़र है शेवये असियां ख़तापोशी।।
करे जो ज़िक्रे दुर्गा वारेग़म से हो सुबुकदोशी।
हमेशा शाहिदे मतलब से हासिल हो हमाग़ोशी।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।33।।


जो है मशहूर आलमलामकां वह खाना है उनका।
ये शमये नैय्यरे आज़म भी इक परवाना है उनका।।
ये महताबे फ़लक इक मशग़ला काशाना है उनका।
अज़ल से पंजये खुरशीद रौशन शाना है उनका।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।34।।


हुदूदे फ़ह्मो दानिश से जियादा शाने मादर है।
अजल से चर्खे हफ़्तुम कुर्सियो ऐवाने मादर है।।
ज़मी पापोश गर्दू तावये फ़रमाने मादर है।
हुजूमें देवता परवर्देये दामाने मादर है।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।35।।


अज़ीज़े जानदिल मतबूआ ख़ातिर नाम है उनका।
हरइक पर चश्मे बख़शिश है ये फ़ैज़ेआम है उनका।।
जिलाना मारना आराम देना काम है उनका।
ज़माना सब मुतीओ बन्दये बेदाम है उनका।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।36।।


अगर हो चश्मे रहमत, ग़म ख़यालो ख्वाब हो जावे।
हुबाबेआब शक्ले लूलुए शादाब हो जावे।।
मिसाले फ़र्शे नैय्यर हल्क़ये-गरदाब हो जावे।
हर इक ज़र्रा क़रीबे मेहरे आलमताब हो जावे।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।37।।


इधर भी चश्मे रहमतख़ेज का जल्द इक इशारा हो।
खुलें बस दिल की आँखें रूये वहदत का नज़ारा हो।।
नज़र में जागुज़ीं हरदम जमाले आलम आरा हो।
ये नूरे पाक मेरी आँख की पुतली का तारा हो।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।38।।


करे जो पाठ बहरे ग़म से बेड़ा पार हो जावे।
बसिद्क़े दिल पढ़े बेकार गर बाकार हो जावे।।
ज़रो ज़ोरो ज़मीं हासिल हो क़िस्मत यार हो जावे।
ये मिसरअ पढ़ते पढ़ते मुनइमो ज़रदार हो जावे।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।39।।


पढ़े जो शक्तिचालीसी रुखे मतलब नज़र आवे।
फले फूले निहोले मुस्तमंदी में समर आवे।।
ये ख़्वाहिश शंकरदयाल की है भक्ति उसको मिल जावे।
बहम हो नक़्द फ़रहत लबपै यह मिसरअ वो जब लाये।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै।।40।।

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