छंटाई
लघु कथा - छंटाई
आज भी जतिन की ना सुन गीता उस पर बरस पड़ी, "एक अदद नौकरी क्या मिल गई, किसी को कुछ समझता ही नहीं है। एक से बढ़ कर एक खूबसूरत, शिक्षित, नौकरीपेशा, अमीर घरानों के रिश्ते और हर तरह की लड़कियों को नापसंद कर चुका है। आखिर तू चाहता क्या है? बस एक मिनट की बात और नापसंद। अब तो हद हो गई है, तुझे शादी करनी भी है या नहीं, साफ-साफ बता?"
जतिन ने माँ की खीझ मिटाने के लिए मुस्कराते हुए जवाब दिया, "माँ! तुम चिंता मत करो। न मेरी पसंद, न आपकी पसंद, मैं तो केवल लड़की की पसंद से ही शादी करूँगा।"
गीता का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, "मुझे नादान समझता है? अब तक तो सभी लड़की वाले ही खुद चल कर हमारे पास आए हैं। बस हर बास तू ही मना कर देता है।"
कुछ दिनों पश्चात एक सामान्य-सी लड़की के लिए जतिन की "हाँ" सुन गीता चौंक गई। उसने भी बेमन से हाँ कर दी, फिर होने वाली बहू से अकेले में पूछा, "ऐसा क्या चाहती थीं तुम, जिसे सुन कर मेरे बेटे ने शादी के लिए तुरंत हामी भर दी?"
विनम्रतापूर्वक सुमिता ने कहा, "माँ जी! जतिन ने केवल अपनी मंशा चाहिर की थी, उसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने मात्र इतना ही बताया, मैं माँ के साथ रहता हूँ और भविष्य में भी उन्हीं के साथ हमेसा रहूँगा।"
मीरा जैन
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